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Civil Lines DNK Road Kondagaon
एक समय की बात है । एक बाजार मे दो दुकाने थीं । दोनों ही किराने की दुकान थी। इनमे से एक दुकान बहुत बड़ी थी । एवं एक दुकान छोटी थी। दोनों मे से बड़ी दुकान ज्यादा अच्छे से चलती थी । उसका मालिक काफी मिलनसार था । वह सभी से हास कर तथा नरमी से बात करता था। उसे लगता था की बोल का मोल बहुत ज्यादा होता है।
अब दोनों दुकानों के मालिकों के निधन के बाद उनकी दुकानें उनके बेटों के पास चली जाती हैं । लेकिन अब दोनों मे से छोटी दुकान ज्यादा अच्छे से चलने लगती है। वहाँ ग्राहकों’ की बहुत भीड़ लगी रहती है।
वहीं जबकि बड़ी दुकान अब खाली खाली रहने लगती है। यह देख कर एक व्यक्ति पास के ही किसी अन्य दुकानदार से इस विषय मे बात करता है। तथा उससे पूछता है की ऐसा कैसे हो गया ।
तो वह उसे बताता है की छोटे दुकान का मालिक जो है वह उसके ग्राहकों से प्यार से बात करता है। वह बड़ा मिलनसार है सबसे नरमी से पेश आता है। उसे बोल का मोल पता है। जबकि बड़े दुकान का मालिक सबसे ठीक तरह से बात नहीं करता उसकी जबान कडक है।
वह उसे आगे समझाता है की इस दुनिया मे बोल का बहुत ज्यादा महत्व है खासकर व्यापार मे तो और भी ज्यादा। जो छोटा दुकानदार है वह अपने बोल का मोल समझता है। क्युकी अगर आप अपने ग्राहकों से ठीक से बात नहीं करेंगे उनसे थी से पेश नहीं आएंगे । तो वे आपसे दूर चले जाएंगे । और आपके व्यापार का चलना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
क्यूंकी यह सर्वथा सत्य है की
“मीठे बोलने वाले का तो करेला भी बिक जाता है और कडवे बोलने वाले का मीठा भी नहीं बिकता “
“मीठे बोल का मोल बहुत है”
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